कम्प्यूटर का परिचय (INTRODUCTION TO COMPUTER) HISTORY & DEVELOPMENT OF COMPUTER Advantages of First, second, third, forth, fifth Generation Computer


1.1. कम्प्यूटर का विकास एवं इतिहास (HISTORY & DEVELOPMENT OF COMPUTER)

कम्प्यूटर के इतिहास का प्रारम्भ आदिकाल से ही माना जाता है। कम्प्यूटर की शुरुआत तब हुई जब मनुष्य ने गिनने के लिए अंगुलियों का प्रयोग किया। अंगुलियों पर गणनाएँ बहुत कम मात्रा में हो पाती थीं। प्राचीन काल में शिकारियों को यह जानने की इच्छा रहती थी कि उन्होंने कितने जानवरों, पक्षियों आदि का शिकार किया। इसके बाद मनुष्य ने गिनने के लिए अनेक युक्तियों को खोजा।




कम्प्यूटर का उत्तरोतर विकास निम्नलिखित युक्तियों की खोज से हुआ

  • 1) एबेकस (Abacus)
  • 2) यांत्रिक अंकीय गणना यन्त्र (Mechanical Digital Calculator)
  • 3) पंचकार्ड से नियंत्रित लूम (Loom)
  • 4) डिफरेंस इंजन (Difference Engine)
  • 5) ऑटोमेटिक सीक्वेंस कांट्रोल्ड कैल्कुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator)


1.1.1.1. एबेकस (Abacus)


कम्प्यूटर का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है। चीन में एक गणना यन्त्र एबेकस का अविष्कार हुआ। यह एक यांत्रिक मशीन है जो आज भी चीन, जापान सहित एशिया के अनेक देशो में अंकों की गणना के लिए काम आती है। एबेकस तारों का एक फ्रेम होता है इन तारों में बीड (पकी हुई मिट्टी के गोले) पिरोए रहते हैं प्रारम्भ में एबेकस को व्यापारी गणना करने के लिए प्रयोग किया करते थे। एबेकस अंको को जोड़ने, घटाने, गुणा करने तथा भाग देने के काम आती है।



1.1.1.2. ब्लेज पास्कल (Blaise Pascal)

 शताब्दियों के बाद अनेक यांत्रिक मशीनें अंकों की गणना के लिए विकसित की गई। 17वीं शताब्दी में फ्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल (Baise Pascal) ने एक यांत्रिक अंकीय गणना यन्त्र (Mechanical Digital Calculator) को विकसित किया।


इस मशीन को एडिंग मशीन (Adding Machine) कहते थे, क्योकि यह केवल जोड़ या घटाव कर सकती थी। यह मशीन घड़ी और ओडोमीटर के सिद्धान्त पर कार्य करती थी। इसमें कई दाँतेयुक्त पहिये (Toothed Wheels) लगे होते थे, जो घूमां करते थे। पहिये के दाँतो पर 0 से 9 तक के अंक छपे रहते थे प्रत्येक पहिये का एक स्थानीय मान होता था जैसे- इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि। इसमें एक चक्री के घूमने के बाद दूसरी चक्री घूमती थी। ब्लेज पास्कल (Blaisé Pascal) की इस एडिंग मशीन (Adding Machine) को पास्कालाइन (Pascaline) भी कहते हैं।



1.1.1.3. जैकार्ड लूम (Jacquard's Loom)

 सन् 1801 में फ्रांसीसी बुनकर (Weaver) जोसेफ जेकार्ड (Joseph Jacquard) ने कपड़े बुनने के ऐसे लूम (Loom) का अविष्कार किया जो कपड़ो में डिजाइन (Design) या पैर्टन (Pattern) को कार्डबोर्ड के छिद्रयुक्त पंचकार्डों से नियन्त्रित करता था। पंचकार्ड पर चित्रों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति द्वारा धागों को निर्देशित किया जाता था ।



1.1.1.4. चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage)

 कम्प्यूटर के इतिहास में 19वीं शताब्दी का प्रारम्भिक समय स्वर्णिम युग माना जाता है। अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) ने एक यान्त्रिक गणना मशीन (Mechanical Calculation Machine) विकसित करने की आवश्यकता तब महसूस की जब गणना के लिए बनी हुई सारणियों में त्रुटि (Error) आती थी क्योंकि यह सारणियाँ (Tables) हस्त निर्मित (Hand Set) थीं। चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने वहन किया। उस मशीन का नाम डिफरेंस इंजन (Difference Engine) रखा गया। इस मशीन में गियर और शाफ्ट लगे थे। यह भाप से चलती थी।


चित्र 14-डिफरेंस इंजन


सन् 1833 में चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंस इंजन का विकसित रूप एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) तैयार किया जो बहुत ही शक्तिशाली मशीन थी। बैबेज का कम्प्यूटर विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा है। के बैबेज का एनालिटिकल इंजन आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना और यही कारण है कि चार्ल्स बैबेज को कम्प्यूटर का जनक (Father of Computer) कहा जाता है।




1.1.1.5. डॉ. हॉवर्ड आइकेन का मार्क-I (Dr. Howard Aiken's Mark-I) 


सन् 1940 में विद्युत यांत्रिक कम्प्यूटिंग (Electrometrical Computing) शिखर पर पहुँच चुकी थी। IBM के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ. हॉवर्ड आइकेन ने सन् 1944 में एक मशीन विकसित की। यह विश्व का सबसे पहला विद्युत यांत्रिक कम्प्यूटर था और इसका आधिकारिक नाम- 'ऑटोमेटिक सीक्वेंस कांट्रोल्ड कैल्कुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator) रखा गया। इसे हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय को सन् 1944 के फरवरी माह में भेजा गया जो विश्वविद्यालय में 7 अगस्त 1944 को प्राप्त हुआ। इसी विश्वविद्यालय में इसका नाम मार्क-1 पड़ा। यह 6 सेकण्ड में गुणा व 12 सेकण्ड में 1 भाग कर सकता था।


चित्र 1.5-मार्क-I


1.1.1.6. ए. बी. सी. एटानासॉफ-बेरी कम्प्यूटर (A.B.C. Atanasoff-Berry Computer)

सन् 1945 में एटानासॉफ (Atanasoff) तथा क्लीफोर्ड बेरी (Clifford Berry) ने एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन का विकास किया जिसका नाम ए.बी.सी. (A.B.C.) रखा गया। ABC शब्द Atanasoff Berry Computer का संक्षिप्त रूप है। ABC सबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर (Electronic Digital Computer) था।


1.1.2. कम्प्यूटर इतिहास का कालक्रम (Chronology of Computer History)

आधुनिक कम्प्यूटर प्रणाली सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान करती है। लोग ऑनलाइन नौकरियों की तलाश करते हैं तथा घर पर बैठ कर इन्टरनेट के माध्यम से कार्य कर सकते हैं। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी ने दुनिया भर के डाक्टरों को चिकित्सा एवं सर्जरी सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान की हैं। यह सुविधाएँ लैपटॉप, टैबलेट्स, निजी डेस्कटॉप कम्प्यूटर्स, हाई स्पीड इन्टरनेट लाइन और वेब होस्टिंग सर्वर के साथ आधुनिक उपकरणों की प्रचुरता एवं उन्नतिशीलता के कारण सम्भव हो पाई है। इसी प्रकार कम्प्यूटर जगत में लगातार विकास हो रहा है। इसके इतिहास एवं विकास के कालक्रम को इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं


1) 3000 ईसा पूर्व (3000 BC)-प्रथम एबेकस का आविष्कार हुआ तथा इसका उपयोग बेबीलोनियों द्वारा किया गया।


2) 1800 ईसा पूर्व (1800 BC) संख्यात्मक समस्याओं को सुलझाने हेतु बेबीलोनिया के • गणितज्ञों द्वारा एल्गोरिदम (Algorithms) का विकास किया गया।



38) 1994 ई.-486DX4 नामक क्लॉक-ट्रिपलिंग माइक्रोप्रोसेसर इन्टेल द्वारा प्रस्तुत किया गया।


1.1.3. कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ (Generations of Computer) 

कम्प्यूटर के विकास की प्रक्रिया सन् 1946 के बाद से आज तक लगातार चल रही है। जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों में विकास होता गया वैसे-वैसे कम्प्यूटर के विकास का नया चरण प्रारम्भ होता गया। कम्प्यूटर में प्रयोग किए गए मुख्य इलेक्ट्रॉनिक पुजों के आधार पर कम्प्यूटर के विकास चरणों को निम्नांकित पाँच पीढ़ियों में बाँटा गया है


  1. पंचम पीढ़ी का कम्प्यूटर
  2. चतुर्थ पीढ़ी का कम्प्यूटर
  3. तृतीय पीढ़ी का कम्प्यूटर
  4. द्वितीय पीढ़ी का कम्प्यूटर
  5. प्रथम पीढ़ी का कम्प्यूटर

चित्र 1.6-कम्प्यूटर की पीढ़ियों




प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स [First Generation Computers (1946-1956)]

सन् 1946 से सन् 1956 के मध्य विकसित हुए कम्प्यूटरों को प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स कहा जाता है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर्स में प्रयोग की गई मुख्य इलेक्ट्रॉनिक युक्ति वैक्यूम ट्यूब थी। डायोड वाल्व नामक वैक्यूम ट्यूब का आविष्कार सन् 1904 में सर एम्बरोज फ्लेमिंग ने किया। वॉन न्यूमेन के मानक डिजाइन के अनुरूप कम्प्यूटर द्विआधारी अंक पद्धति (Binary Number System) पर कार्य करते थे। बाइनरी पद्धति में एक स्विच का प्रयोग होता है जिसे जल्दी-जल्दी ऑन अथवा ऑफ किया जाता है। इन्हीं बाइनरी (Binary) स्विचो की सहायता से क्लॉयड शेनॉन ने स्विचिंग सर्किट बनाया था, जो 1 (ON) से चलाया तथा 0 (OFF) बंद होता था। सन् 1946 में कम्प्यूटर के विकास की प्रथम पीढ़ी का पहला कम्प्यूटर एनियाक (Electronic Numerical Integrator and Calculator or ENIAC), बनकर तैयार हो गया।


ENIAC का वजन 30 टन था। इस कम्प्यूटर में 18,000 वैक्यूम ट्यूब, 70,000 प्रतिरोधक (Resistors), 10,000 संधारित्र (Capacitors) और 6,000 स्विचों का प्रयोग किया गया था। यह एक अत्यन्त विशाल आकार का कम्प्यूटर था। एनियाक एक सेकण्ड में 5,000 योग अथवा 350 गुणन क्रियाएँ कर सकता था परन्तु यह गति आधुनिक कम्प्यूटर की तुलना में हजारों गुना कम थी। एनियाक कम्प्यूटर की कुछ सीमाएँ (Limitations) थीं। इसमें प्रयोग की गई 18,000 वैक्यूम ट्यूब जल जाती थी। यह कम्प्यूटर 150 किलोवॉट बिजली खर्च करता था। 


प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर के लाभ (Advantages of First Generation Computer)

 प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स के लाभ निम्नलिखित हैं 


  • 1) वैक्यूम ट्यूब ही उस दौरान उपलब्ध था जिसका एक इलेक्ट्रॉनिक घटक के रूप में प्रयोग किया गया।
  • 2) वैक्यूम ट्यूब टेक्नोलॉजी ने डिजिटल कम्प्यूटरों का आगमन सम्भव बना दिया। 
  • 3) ये कम्प्यूटर अपने समय के सबसे तेज गणना उपकरण थे। ये मिली सेकेण्ड में गणना कर सकते थे।


प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर की हानियाँ (Disadvantages of First Generation Computer) 

प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की हानियाँ निम्नलिखित हैं 

  • 1) आकार में बहुत बड़ा एवं भारी ।
  • 2) अविश्वसनीय
  •  3) हजारों वैक्यूम ट्यूब के प्रयोग से बहुत अधिक मात्रा में गर्मी उत्पन्न करता था इसीलिए बार-बार जल जाता था। 
  • 4) इसके लिए वातानुकूलन की आवश्यकता थी। 
  • 5) ये कहीं दूसरे स्थान पर ले जाने योग्य नहीं होते थे।
  • 6 ) इनका वाणिज्यक उत्पादन कठिन एवं कीमती था ।
  • 7) इसका वाणिज्यक उपयोग सीमित था।



1.1.3.2. द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर्स (Second Generation Computers) 

सन् 1947 में बेल लैबोरेटरीज में ट्रांजिस्टर का अविष्कार किया गया तथा 1950 के दशक के अन्त में उसने इलेक्ट्रॉनिक क्रान्ति की शुरूआत की। 1950 के दशक के अन्त में दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूब की जगह ट्रांजिस्टर ने ले ली जो सस्ता, हल्का तथा कम गर्मी उत्सर्जित करता था। इस समय मेमोरी ( IBM 1401 Honey Well 800) के लिए मैग्नेटिक कोर का निर्माण होने लगा, इससे कम्प्यूटर का आकार छोटा हो गया और विश्वसनीयता भी बढ़ गई। दूसरी पीढ़ी का कम्प्यूटर जटिल अंकगणित तथा तार्किक समस्याओं का हल प्रस्तुत करने में सक्षम था।




द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर के लाभ (Advantages of Second Generation Computer):


द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर्स के लाभ निम्नलिखित हैं --

  • 1) पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर की तुलना में आकार में छोटा था।
  • 2) अधिक विश्वसनीय था। 
  • 3) कम गर्मी उत्पन्न करता था।
  • 4) ये कम्प्यूटर मिली सेकेण्ड से माइक्रो सेकेण्ड में गणना करने लगे। 
  • 5) हार्डवेयर विफलताओं की आशंका कम हो गयी।
  • 6) कहीं भी ले जाने योग्य था। 
  • 7) व्यापक व्यावसायिक उपयोग के योग्य था।


Thakur Publication private limited Lucknow Dr Sunil Kumar Sharma Mahesh Kumar Dhiman द्वारा बताए गए सभी बातों को लिखा गया है। यह पूरा क्रेडिट ठाकुर प्रसाद पब्लिकेशन को जाता है। और भी ज्यादा जानकारी के लिए आप इनका बुक इनके स्टोर से ले सकते हैं।

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